8TH SEMESTER ! भाग- 137( Eye for An Eye-6)
"देखो अरमान भाई... मैं एक किसान का बेटा हूँ और ज़मीन से जुदा हुआ आदमी हूँ. इसलिए ज़मीन मे सोने मे मुझे कोई दिक्कत नही होगी और मेरे पास ऑलरेडी सिगरेट की दो-दो पैकेट है...एक आप भी रख लो..."बोलते हुए उसने सिगरेट की एक पैकेट निकाली और मेरे जेब मे डाल दी...
"थैंक्स और तीसरी शर्त याद है ना..."
"बिल्कुल याद है, आप फ़िकर मत करो अरमान भाई... हम लोगो ने इतनी दारू चढ़ा रखी है कि उसको खड़ा करना तो दूर, खुद भी खड़े नहीं रह पा रहे.. अब तोह दीपिका मैम भी यदि नंगी होकर मेरे सामने आ जाए तो अपुन कुछ नहीं करेगा ."उसके बाद राजश्री पांडे ने मेरे गाल को चूमा और गुड नाइट बोलकर वही ज़मीन पर अपने दोस्तो के साथ फ्लैट हो गया....
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"साला गे..."मेरे गाल पर जिस जगह राजश्री पांडे ने किस किया था उसे सॉफ करते हुए मैने कहा"ये लौंडा भी दीपिका पे फिदा है....और तभी मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ मे कुछ आया...कुछ ऐसा जिससे ,मैं दीपिका का सारा गुरूर तोड़कर उसके पिछवाड़े मे डाल सकता था..."
दिमाग़ मे तुरंत एक सूनामी की लहर उठी और फिर शांत हो गयी. अभी-अभी मेरे अंदर आए सूनामी ने मुझे आने वाले दिनो मे क्या करना है,कैसे करना है...इसके सारे तरीके समझा दिए थे. लेकिन मैं इस समय एक बार फिर खुद से जूझ रहा था और मेरे सामने एक बार फिर वही सवाल था कि...क्या मुझे ये करना चाहिए ?
"बिल्कुल करना चाहिए... हक़ है तेरा.."2.0 ने मुझसे कहा...
"पर ये कुछ उच -नींच हो गई तो... दीपिका मैम,नौशाद कि तरह नहीं है.. साली चालाक है.. मै जिन्दा बच गया हूँ, ये सुनते ही वो प्लान बनाने लगी होगी... ऊपर से पूरा कॉलेज स्टाफ उसका दीवाना है, 2.0 भाई... "
"अब क्या वो श्री अरमान से भी बढ़कर है क्या...??"2.0 ने मेरे अहम् पर वार किया
"सही बोल रहा है, भाई तू..."
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एक लड़की की खूबसूरती उसे तभी तक बचा सकती है जब तक उसकी वो खूबसूरती किसी के आँख मे खटक ना जाए क्यूंकी यदि ग़लती से भी उस लड़की की खूबसूरती नफ़रत मे बदल गयी तो फिर उसका खूबसूरत जिस्म भी बदसूरत लगने लगता है और ऐसा ही इस वक़्त मेरे साथ हो रहा था.... चाहे पूरा जमाना दीपिका मैम के लिए पागल हो लेकिन अब वो मेरे लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ एक बदसूरत सी घमंडी लड़की थी... जिससे मुझे बदला लेना था.... मुझे अब ना ही उसकी वो भरी भरी छातियाँ आकर्षित लग रही थी और ना ही उसके शरीर का कोई अंग. दीपिका मैम अब मेरी आँखो मे खटक रही थी और उसका नाम जहन मे आते ही मैं गुस्से से तड़प उठता था... दिल करता था की अभी उस R. दीपिका का बाल पकाडू और रोड पर घसीट-घसीट कर उसकी जान ले लूँ....
जब मेरे दिल और दिमाग़ ने दीपिका मैम से बदला लेने वाले मेरे आइडिया पर अपनी मुँहर लगा दी तो मुझे एक और लड़की का ख़याल आया...और ये लड़की जो अभी मेरे ख़यालो मे आई थी वो कोई और नही बल्कि वही लड़की थी जो अक्सर मेरे ख्वाबो मे मुझे दर्शन देती थी...बस फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि मेरे ख्वाब मे वो मेरे लिए आती थी लेकिन हक़ीक़त मे वो किसी और के लिए आती थी... फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि ख्वाब मे मैं जिस जुस्तजु के साथ उसके करीब होता था ,हक़ीक़त मे मैं इसके बिल्कुल उलट उसी जुस्तजु के साथ उससे बहुत दूर हो रहा था.... जैसे आज कि तारीख मे गैलेक्सी एक दूसरे से दूर होती जा रही है...
ऐसा नही है कि मैने उसे कभी भूलने की कोशिश नही की लेकिन जब भी ऐसा करने की सोचता तभी दिल के किसी कोने से आवाज़ आती कि एक बार कोशिश करने मे क्या जाता है...?
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कभी-कभी जब वो सपने मे आती और मेरे करीब बैठी रहती तो दिल करता कि मेरी कभी आँख ही ना खुले .कई बार जब मैं सपना देख रहा होता था तो मुझे ना जाने कहाँ से मालूम चल जाता था कि ये हक़ीक़त नही बल्कि हक़ीक़त के दुनिया की एक झूठी परछाई है,जिसका हक़ीक़त की बाहरी दुनिया मे कोई वज़ूद नही है.....लेकिन फिर भी मैं दिल को समझाने मे नाकाम ही रहा.
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उस दिन मैं पूरी रात नही सोया, खिड़की के पास बिस्तर खिसकाकर सिगरेट के धुए से सारी रात अपने सीने को जलाता रहा... क्यूंकी उस वक़्त मेरे अंदर हज़ारो सवालो ने एक साथ दस्तक दे दी थी ,जिसका जवाब मैं ढूँढ रहा था....मैने एक और सिगरेट सुलगाई और एमटीएल भाई के बारे मे सोच विचार करने लगा.
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ऐसा नही है कि इतने दिन बीत जाने के बाद मैं सिदार को भूल चुका हूँ या मुझे उसकी परवाह नहीं है. Ñउसकी मौत की खबर अब भी मेरे कानो मे गूँजती है और जब भी ये खबर मेरे कानो मे गूँजती है तो सारी दुनिया को एक तरफ करके,सारे साइंटिस्ट्स के सिद्धांतो को , कल्पनाओ की माँ-बहन एक करके मैं खुद को उसी जगह पाता हूँ जहाँ मुझे हॉस्पिटल मे ये खबर पता चली थी. कि ...सिदार भाई कई सारे सवाल अपने पीछे छोड़ गये थे जिसका जवाब शायद मुझे कभी नही मिलने वाला था...लेकिन एक चीज़ जो मैने करने की ठानी थी वो ये कि सिदार के हॉस्टल मे उस रुतबे को मैं कायम रखूँगा ,जिसमे उसने अपनी ज़िंदगी के सबसे अहम चार साल बनाये थे...ऐसा सोचना भले ही किसी को पागलपन लगे लेकिन मुझे इससे कोई फ़र्क नही पड़ता.... क्यूंकि मुझे सुई कि नोक के बराबर भी घंटा फर्क नहीं पड़ता कि.. लोग मेरे बारे मे क्या सोचते है, आप मेरे बारे मे क्या सोचते हो. इस वक़्त दिल कर रहा था कि सिदार भाई कहीं से... कही से भी बस एक बार लौट कर आ जाए ताकि मैं उनसे गले मिल सकूँ.... दिल कर रहा था कि एक बार फिर मैं कोई ग़लती करूँ और सिदार मुझे डाँट दे और फिर कंधे मे हाथ रखकर समझाए कि"अरमान, ऐसा मत कर..."
लेकिन अब ये हो नही सकता था...क्यूंकी अब ना तो एमटीएल भाई कभी वापस आने वाले थे और ना ही उनको लेकर मेरे अरमान कभी पूरे होने वाले थे....
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रात से सुबह हुई ,लेकिन मैं पिछले कई घंटो की तरह अब भी उसी खिड़की के पास खड़ा अपने अतीत के कुछ पन्ने पलट रहा था और अपने ज़िंदगी के उन पलो को याद कर रहा था,जो अब कभी आने ही नहीं वाले नही थे..... सिदार को इस वक़्त याद करने की एक वजह शायद ये भी थी कि मुझे खिड़की से हॉस्टल के बाहर रखी वो जंग लगी बेंच दिख रही थी...जिसपर बैठकर मैं सिदार से अक्सर बात किया करता था....
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"क्या सोच रेले हो अरमान भाई..."
"हुउऊउन्ण..."मैं जैसे झटके से होश मे आया...
"इतना चौक क्यूँ गये...मैं तो कल रात ही इधर आया था..."आँखे मलते हुए राजश्री पांडे बोला, वो उठ चुका था
"कुछ नही,सिदार के बारे मे सोच रहा था...."
अबकी बार राजश्री पांडे कुछ नही बोला और अपने दोस्तो को उठाकर रूम से बाहर करने लगा....
"पांडे....सुन"जब वो वहाँ से जाने लगा तो मैने उसे आवाज़ दी"उस लड़के को जिसका चक्कर दीपिका मैम के साथ चल रहा है ,उसे बोलना कि शाम को कॉलेज ख़तम होने के बाद मुझसे मिले..."
"बिल्कुल....मैं खुद उसे इधर लेके आउन्गा...."
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राजश्री पांडे और उसके दोस्तो के वहाँ से जाने के बाद मैं कुछ देर यूँ ही खुद से उलझता रहा और जब कॉलेज जाने का टाइम हुआ तो बढ़िया तैयार होकर, डियो -विओ मारकर हॉस्टल से बाहर निकला.... हॉस्टल से कॉलेज जाते समय मुझे ऐसा लगा कि आज सूरज की रोशनी कुछ ज़्यादा ही है या फिर रात भर ना सोने के कारण मेरी आँख हाल रही थी..? आज कॉलेज की बिल्डिंग मुझे मेरे किसी बिछड़े हुए आशियाने की तरह लग रही था,जहाँ मैं जल्द से जल्द पहुचना चाहता था और जैसे ही मैने कॉलेज मे एंट्री मारी, झूठ यही बोल रहा... वहा मौजूद सभी लड़के -लड़कियों की नज़रे मुझ पर आ टिकी... सभी स्टूडेंट्स अपने साथी स्टूडेंट्स से मेरे बारे मे खुसुर-फुसुर करने लगे... कुछ मेरे बॉडी को भी देख रहे थे तो कुछ मेरे शरीर पर ज़ख़्म के निशान ढूँढ रहे थे.... कुछ ने मुस्कुरा कर हाथ मिलाते हुए मेरा हाल-चाल पूछा, तो कुछ अपना नाक सिकोड कर अंदर ही अंदर मुझे गाली देते हुए किनारे हो गये... उन सबको को इग्नोर मारते हुए मैं सीधे ,चुप-चाप आगे बढ़ गया और आगे के हालात भी वैसे ही थे....मतलब की सब मुझे देखते और फिर आपस मे बात करते... जब मैं कॉरिडर मे चलते हुए आगे बढ़ रहा था तो मेरे आगे जो स्टूडेंट्स थे वो मुझे देखते ही साइड हो जा रहे थे... खैर, मुझे पहले से ही अंदाज़ा था कि मेरे कॉलेज आने पर कुछ -कुछ ऐसा ही महॉल होगा... इसीलिए तो मै इतना excited था,कॉलेज वापसी को लेकर... आखिर कोमा मे था.. इतना फेमस और लोगो कि अटेंशन मिलना तो लाजिमी था.
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आज ना जाने कितने दिनो बाद मैं राइट टाइम पर कॉलेज पहुचा था. मैने क्लास मे बैग रखा तो मुझे चाहने वालो ने मेरा हाल-चाल पुछा और कुछ लड़के अपना रोला जमाने के लिए मुझे अपने साथ क्लास से बाहर आने के लिए कहा... Yep, मेरे जैसे लौंडे के साथ लड़के कभी कभार घूम लेते है, ताकि कॉलेज मे थोड़ा बहुत वर्चस्व उनका भी कायम हो.. लड़किया उन्हें देखे.. लड़के उन्हें देख कर डरे... वगैरह -वगैरह... भाति -भाति के लोग, भाति -भाति के योग
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"अरमान...वो देख.... ईशा ,गौतम और उसकी वो बहन...जिसके चक्कर मे इतना बड़ा लफडा हुआ था..."एक लौन्डे ने मुझे इशारा करते हुए धीरे से कहा...
ये सुनकर मैं शुरू मे घबरा गया और सोचा कि तुरंत वहाँ से क्लास के अंदर चला जाउ... उधर मेरे दिल ने,जो कि ईशा से बहुत प्यार करता था, उसने कहा कि मुझे अभी ही गौतम से उस दिन के लिए माफी माँग लेनी चाहिए ताकि ईशा मुझसे फिर से बात करने लगे, मैने ऐसा करने के लिए एक पल सोचा भी लेकिन तभी मेरे दूसरे version अरमान 2.0 ने.. यानी मेरे अहंकार ने मुझे ऐसा करने से सॉफ मना कर दिया...
"You Are Right, 2.0....यदि मैने गौतम से माफी माँगी तो थूक कर चाटने वाली बात हो जाएगी और जब मैने दीपिका मैम जैसी गुलाबी कली कि नहीं चाटी तो फिर ... ब्लैक होल मे जाए ईशा और मेरे हाथ से मार खाने वाला उसका बाय्फ्रेंड..."उनको अपनी तरफ आता हुआ देख मैने गॉगल निकाला और पहन कर वहाँ की दीवार से एक हाथ टीकाया....
गौतम की हालत देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी हाल -फिलहाल कुछ ही दिनो से ही कॉलेज आ रहा है ....वो एक पैर से लंगड़ा रहा था और ईशा के सहारे चल रहा था...
"अब ये गौतम मुझे यहाँ देखकर फिर से लफडा करेगा... क्या मुझे अभी क्लास के अंदर चले जाना चाहिए....?"मैने खुद से एक बार फिर पुछा लेकिन जवाब एक बार फिर 2.0 ने दिया
"यदि तू गौतम को देखकर क्लास के अंदर गया तो ये सारे लौन्डे यही समझेंगे कि तेरी गौतम को देखकर फट गयी है और फिर इज़्ज़त डाउन हो जाएगी सोच ले..."
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आख़िरकार मैने वही दीवार पर एक हाथ टिका कर खड़े रहने का फ़ैसला किया और च्विन्गम मुँह मे ना होते हुए भी रोल मे ऐसे मुँह चलाने जैसे 5-6 चिनगम मेरे मुँह मे एक साथ हो...
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"सुन बे..."जब वो तीनो मेरे सामने आए तो मैने दूसरी तरफ खड़े अपने क्लास के एक लड़के से तेज़ आवाज़ मे कहा"उस लड़के को होश आ गया क्या ,जिसे मैने कल रात सर पर रोड से मारा था या अभी भी कोमा मे है...."
पता नही मुझे अचानक क्या हुआ,जो मैं ये सब गौतम के मुँह पर बोल गया, क्यूंकी अंदर से तो मेरी भी बुरी तरह से फटी हुई थी, कि कही फिर से लफड़ा ना हो जाए... कही फिर से गौतम के गुंडे मेरी खातिरदारी करने ना आ जाये. पर अरमान तो फिर अरमान ही है...